Monday, April 9, 2012

दूध जलता है कि यादें


जब भी बैठती हूँ कभी,
चावल लेकर ,
और चुनती हूँ कंकड़ उनसे,
खो जाती हूँ मैं तुम्हारी यादों में,
बनाने लगती हूँ ,
तुम्हारी तस्वीर ,उन चावलों के दानों पे,
लिखती हूँ तुम्हारा नाम,
अनवरत चलती रहती हैं अंगुलियाँ,
खो जाती हूँ मैं उन यादों में,
हो जाती हूँ बेसुध,
अचानक कुछ जलने की बू आती है,
देखती हूँ,
गैस पर चढ़ा दूध पूरा उबल गया है,
जल गया है पतीला,
ये हादसा अक्सर होता है,
साथ मेरे,
जैसे अक्सर जलता है दिल मेरा,
तुम्हारी यादों में.
---------------------------------------------नितिका सिन्हा.

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