काम के बोझ से जब
थक जाता है जिस्म
चरमराने लगते हैं इसके पूर्जे
बना लेती हूँ मैं सहारा
बिस्तर को
निढाल पड़ जाती हूँ उस पर
फिर घूमने लगती है
ज़ेहन में कुछ तस्वीरें
दौड़ने लगती हैं बदन में
हरसू तुम्हारी यादें
जब आज कैलेंडर देखा
तुम्हारा जन्मदिन आ गया
शायद भूल गए तुम
पर याद है मुझे सबकुछ
उतरती नहीं है कुछ भी ज़ेहन से
सारी यादों को संजो रखा है मैंने
नहीं जानती अब कहाँ हो तुम
पर अब भी तुम साथ हो मेरे
अब भी मेरे रगों में बह रहे तुम
उम्मीद नहीं कि आओगे तुम
पर इंतजार अब भी है मुझे
तुम्हारा,बस तुम्हारा
----------------------नितिका सिन्हा
SUPERB !!
ReplyDeleteShukriya Vikas jee !!
ReplyDeletewow you r a real lover.... Having a very sweet heart..
ReplyDeleteजीवन के मार्ग पर
ReplyDeleteआगे बढ जाते हैं लोग
सोचते भी नहीं कि
उनकी यादें कितना सताती हैं।
neetika ji nice collection of thoughts,
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