Thursday, May 24, 2012

रगों में दौड़ती यादें



काम के बोझ से जब
थक जाता है जिस्म 
चरमराने लगते हैं इसके पूर्जे 
बना लेती हूँ मैं सहारा 
बिस्तर को
निढाल पड़ जाती हूँ उस पर 
फिर घूमने लगती है
ज़ेहन में कुछ तस्वीरें
दौड़ने लगती हैं बदन में
हरसू तुम्हारी यादें

जब आज कैलेंडर देखा 
तुम्हारा जन्मदिन आ गया 
शायद भूल गए तुम
पर याद है मुझे सबकुछ
उतरती नहीं है कुछ भी ज़ेहन से 
सारी यादों को संजो रखा है मैंने

नहीं जानती अब कहाँ हो तुम
पर अब भी तुम साथ हो मेरे
अब भी मेरे रगों में बह रहे तुम
उम्मीद नहीं कि आओगे तुम
पर इंतजार अब भी है मुझे
तुम्हारा,बस तुम्हारा

----------------------नितिका सिन्हा 


5 comments:

  1. wow you r a real lover.... Having a very sweet heart..

    ReplyDelete
  2. जीवन के मार्ग पर
    आगे बढ जाते हैं लोग
    सोचते भी नहीं कि
    उनकी यादें कितना सताती हैं।

    ReplyDelete
  3. neetika ji nice collection of thoughts,

    ReplyDelete